हिंदी में सिलाई मशीन का इतिहास
सिलाई मशीन एक उपकरण है जो कपड़े, सम्मिश्रणों, वस्त्र, पहनावे, और अन्य उत्पादों को आपस में जोड़ने के लिए धागा का उपयोग करता है। यह यंत्रों, इंजनों, चाल, और कूट प्रणालियों का उपयोग करके काम करता है।
सिलाई मशीन की प्रारंभिक कहानी
सिलाई मशीन की उद्योगिक विकास की शुरुआत 18वीं सदी में हुई। इसका आरंभ पुरे मशीनिकी युग के और भी विस्तृत परिवर्तन का प्रदर्शन करता है।
1790 में, एक फ्रांसीसी कोशिश के दौरान, बार्थेलेमी थिम्बरज नामक व्यक्ति ने सिलाई मशीन के लिए एक पेटेंट प्राप्त किया। यह मशीन धागा डालने और तारी बांधने के लिए हाथ की सरकार उपयोग करती थी, लेकिन इसने वास्तव में अपना मकसद नहीं पाया था और इसे उद्योग में व्यापारिक रूप से उधारा नहीं गया।
अंग्रेजी क्षेत्र में उद्योगीकरण
सिलाई मशीन का प्रारंभिक उद्योगीकरण इंग्लैंड में हुआ, जहां गारकीगरों के लिए संचालित प्रोटोटाइप्स विकसित किए गए। 19वीं सदी के मध्य तक, सभी कपड़ा बनाने के क्रियान्वयन को मुख्य रूप से हाथ से किया जाता था।
1830 के दशक में जॉब कईसप मन मरतोन एक महान योगदान दिया, जिन्होंने चरखी स्लंट साढ़े कर दिए, जिससे अधिक स्लो जब जो समय धागा टायर्स से गुजरता है, को मारकर ही नीचे आता है। चरखी स्लंट 1790 से पहले सिर्फ परोसी सिलाई की चरखी मशीनों के उदाहरण के रूप में प्रयोग में आई थी, जिनके माध्यम से ढोग सीधे ऊतक घूमाने बेलने वाले इंजनों द्वारा सुगवाया जा सकता था।
सिलाई मशीन के महत्वपूर्ण विकास
19वीं सदी में कई सिलाई मशीनों के महत्वपूर्ण विकास हुए, जिनमें से कई अच्छे परिणाम नहीं दिखाए और छोड़ दिए गए। लेकिन 1844 में, ईसाई ग्रोवर नामक अमेरिकी मैकेनीकियन का कार्यक्रम इस संवर्धन की पहल की, जिसे आदेश और सुरंग के बजाय वॉरियर आदि द्वारा छोटे वार्षिक खातों के साथ ऑटोमेटिक बर कार जोड़ा गया। इसमें चबूतरों पर शिकन दायर द्वारा एक बार धागा से बेरा चलाने के लिए एक छोटी टंग पीड़ित की जा सकती थी।
सिलाई मशीन का इतिहास हमें व्यापारिक और वैज्ञानिक बहुतांतरा की सुदृढ़ता को दिखाता है। आजकल, इन मशीनों के कई भिन्न प्रकार उपलब्ध हैं, और वे धागा के प्रकार, सेवाएं, और प्रदर्शन के भीतर विभाजित हो सकते हैं।